Friday, March 29, 2019

आर्थिक स्वास्थ्य




तो आज हम बात करते हैं, आपके आर्थिक स्वास्थ्य की। तो आर्थिक स्वास्थ्य क्या है? इस विषय में हम आज चर्चा करेंगे।


आर्थिक स्वास्थ्य की खासियत यह है कि आपकी जेब में पर्स जितना बड़ा होगा या आपका बैंक एकाउंट जितना भरा भरा होगा, आपका स्वास्थ्य उतना ही अच्छा माना जाएगा। शारीरिक रूप से आपका मोटा होना उतनी अच्छी पहचान नहीं मानी जा सकती, लेकिन आर्थिक स्वास्थ्य में जितना मोटा आपका बैंक अकाउंट हो, उतना अच्छा स्वास्थ्य माना जाएगा।

मैंने काफी समय पूर्व रॉबर्ट कियोसाकी की पुस्तक 'रिटायर यंग रिटायर रिच' पढ़ी थी और उससे मैं बहुत प्रभावित हुआ था। यदि आपने नहीं पढ़ी है तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि उस पुस्तक में मूलतः 4 तरह के लोग बताए गए हैं इनका नाम है एस/बी/ई/आई।

यह चारों अलग-अलग वर्गों में बैठे हुए हैं और इनका कार्य मूल रूप से अलग है। S से तात्पर्य सेल्फ एंप्लॉयड या स्वनियोजित से है जिसमें डॉक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट और इस तरह के लोग होते हैं जो अपने हुनर और कौशल की बदौलत अच्छी खासी कमाई कर रहे होते हैं। B से तात्पर्य बिजनेसमैन से है। बिजनेस यानि व्यापार और व्यापार मूलतः या तो पिछली पीढ़ी से आपके पास अंतरित होकर आता है अथवा आप खुद एक नया व्यवसाय स्थापित करते हैं। इसके लिए काफी ज्यादा मूलधन की आवश्यकता होती है तथा श्रम भी अधिक लगता है। इसके बाद बारी आती है E वर्ग की। ई से तात्पर्य एम्पलाई से है और हमारे चारों तरफ देखने पर हमें यह पता चलता है कि ज्यादातर लोग इस इम्प्लाई या कार्मिक वर्ग से ही जुड़े हुए हैं। यह पैसे कमाने का सबसे आसान जरिया है लेकिन इसमें आप एक सीमा तक ही पैसे कमा सकते हैं और यह भी हो सकता है कि आपके हुनर या कौशल के अनुरूप आपको पैसा ना मिल रहा हो ।

सबसे अंत में वर्ग आता है आई का। आई से यहां तात्पर्य इन्वेस्टमेंट से है और इन्वेस्टर या नियोजक जो भी होते हैं वह अपना पैसा या अपना श्रम ऐसी जगह इन्वेस्ट करते हैं जिससे उसका प्रतिफल या फायदा काफी आगे तक मिलता रहे इसमें एक बार आपको इन्वेस्ट करने से उसका प्रतिफल काफी ज्यादा बार तक मिलता है।

तो मैं बात आर्थिक स्वास्थ्य की कर रहा था और रॉबर्ट कियोसकी के अनुसार सबसे फायदेमंद इन्वेस्टर या निवेशक वर्ग ही होता है लेकिन इसमें निवेश की कला आप को सीखनी पड़ती है। निवेश अधिकतर जोखिमों के अधीन होता है जैसा कि आपने बहुत सारे ब्रॉशर में पढ़ा भी होगा।
बहुत सारे लोग यह भी कह सकते हैं कि हमें हमारी नौकरी से मिलने वाला वेतन ही पर्याप्त है और उसी की बचत करके हम निवेश कर लेंगे। हमें अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता क्या है? तो सबसे पहले हमें आवश्यकता समझनी होगी भविष्य में आने वाले खर्चों के लिए क्या हम तैयार हैं जिस प्रकार हम अपने स्वास्थ्य का बीमा करते हैं उसी प्रकार क्या हमने भविष्य में आने वाले आकस्मिक खर्च या पूर्व निर्धारित खर्चों के लिए तैयारी कर रखी है? अभी आपके बच्चे छोटे हैं किंतु जब वह कॉलेज या विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई के लिए आगे जाएंगे तो उस समय होने वाला खर्च जो कि आज से दो से तीन गुना हो सकता है, क्या उस खर्चे के लिए आपने पूंजी जोड़ रखी है या आपका निवेश उस समय उतना प्रतिफल दे देगा। कॉलेज का कोर्स खत्म होने के बाद उनकी नौकरी लगेगी या नहीं या भी पक्का नहीं होता है तब आपके सामने एक दूसरा खर्च भी आ सकता है कि उन्हें उनका खुद का उद्यम या व्यवसाय स्थापित करने के लिए कुछ पूंजी देनी पड़े। इसके बाद उनके विवाह का नंबर आता है और आजकल किसी भी विवाह में पांच से सात लाख रुपए तक आसानी से खर्च हो जाते हैं तो आप यह समझ ले आज से 10 साल बाद इस पूंजी में करीब-करीब दुगने से ज्यादा की बढ़ोतरी हो जाएगी। तो क्या आपके पास 10 से 15 लाख रुपए एक बच्चे के विवाह के लिए मौजूद रहेंगे। यदि आप के एक से अधिक बच्चे हैं तो आप इस खर्च को उतनी ही गुना कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त बीच बीच में होने वाले कुछ छोटे खर्चे जैसे घर में बदलने वाला टीवी फ्रिज वाशिंग मशीन जैसी चीजें तथा कुछ बड़े खर्चे जैसे 5 से 10 साल में बदलने वाली कार तथा एक लंबे अंतराल के बाद बड़े घर की इच्छा रखना भी स्वाभाविक होता है । तो हम यह देखते हैं कि आज से 15 से 20 साल के अंतराल में हमें करीब करीब 40 से 50 लाख रुपए चाहिए होते हैं। तो क्या आप इस पूंजी के लिए प्रबंध कर चुके हैं यदि नहीं तो फिर आपका आर्थिक स्वास्थ्य कमजोर है।
अगली कड़ी में हम बात करेंगे आर्थिक स्वास्थ्य कैसे बेहतर बना सकते हैं यदि आवश्यकता समझ में आ गई है तो उसके बाद नए-नए विचार दिमाग में कुल बुलाने लगते हैं, जिन्हें आप चाहें तो इस पोर्टल पर इन्हें शेयर कर सकते हैं।

Saturday, March 23, 2019

जूते चप्पलों का रख रखाव कैसे करें ।

जूते चप्पल कई प्रकार के होते हैं। चमड़े कैनवस फैब्रिक, रब्बर, पीवीसी आदि किस्म के जूतों की मशक्कत अलग-अलग प्रकार की होती है जैसे...

•चमड़े के जूतों पर से पहले धूल ब्रश से साफ करें बाद में सूती कपड़े पर लेदर क्लीनर डालकर साफ करें। थोड़ी देर वैसे ही रखें बाद में पॉलिश करें जिससे वह कड़क नहीं होंगे, मुलायम और चमकदार रहेंगे।

•जूते चप्पलों को कभी भी धूप में ना सुखाएं, इससे उनका रंग व चमक फीकी हो जाती है।

•कैनवास एवं फैब्रिक के जूते वाशिंग मशीन में भी धो सकते हैं धोने सूखने के बाद उनमें कागज के गोले डाल कर रखें ताकि उनका आकार ज्यों का त्यों बना रहे।
•चप्पल का सोल घिस गया हो तो नया लगवा लें। घिसे सोल वाले जूतों से पैर को सपोर्ट नहीं मिलता और पैरों में दर्द होने लगता है।

•कोशिश करें कि हर बार अलग-अलग डिजाइन के जूते खरीदे ताकि हर बार पांव के अलग-अलग हिस्से पर दबाव आए एक तरह की डिजाइन से एक ही हिस्से पर सतत दबाव रहता है।

•हर मौसम के लिए अलग जूते इस्तेमाल करें जैसे बरसात में खुले या जाली वाले पर पीछे की और पट्टी से बंद होने वाले जूते सैंडल पहने ताकि वह फिसलने या पानी जमा होने की गुंजाइश ना रहे और कपड़ों पर कीचड़ न उड़े। सफर में एवंं ठंड में बंद जूते पहने जिससे पैरों की सुरक्षा हो।

•जब बहुत चलना हो तो महिलाएं ऊंची हील वाली चप्पल या सैंडल ना पहनें, इससे कमर में दर्द हो सकता है। सपाट एवं सुविधाजनक जूतों के इस्तेमाल से चलने में आसानी होती है।

Tuesday, March 12, 2019

अपराधी कौन

क्या आप अपराधी हैं?यह सवाल पूछते ही सामने वाला चौकन्ना हो जाता है,अरे यह कैसा सवाल है? लेकिन इसमें एक राज छुपा है, यह सामान्य अपराध की बात नहीं हो रही है बल्कि कुछ ऐसे अपराध जिन्हें हम जानते बूझते करते हैं। हमारी प्रज्ञा यानी बुद्धि हमें बताती है कि यह गलत है, किंतु कुछ समय के लिए उस बुद्धि पर पर्दा पड़ जाता है और फिर भी हम वह अपराध करते जाते हैं, इसे ही प्रज्ञापराध कहते हैं। सवाल सही है क्या आप प्रज्ञापराधी हैं?
चलिए मुद्दे को और भी स्पष्ट कर देते हैं प्रज्ञापराध इस तरह के अपराध है जिन्हें हम अपने ज्ञान होने के बावजूद प्रतिदिन करते हैं जैसे अपने शरीर पर अत्याचार मसलन भोजन से जुड़ी हुई कुछ खराब आदतें जिन के विषय में पता है कि इस तरह का भोजन हमें नुकसान पहुंचाएगा उसके बावजूद भी हम सब बातों को दरकिनार करके वह भोजन करते रहते हैं। इसी प्रकार हमें पता है कि गंदगी बीमारियों को फैलाने में सहायक होती है लेकिन फिर भी हम साफ सफाई रखना भूल जाते हैं। हमें पता है जोर-जोर से संगीत बजाने से आसपास के लोगों को परेशानी होगी लेकिन कुछ समय के लिए हम सब कुछ भूल कर इस तरह के अपराधों में शामिल हो जाते हैं। शेष विषय तो फिर कभी लेंगे किंतु भोजन से जुड़ा हुआ विषय अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। व्यक्ति किसी भी पार्टी में भरपेट भोजन कर लेता है बल्कि यूं कहें कि पेट भरने की सीमा से अधिक खा जाता है। इससे यह होता है पेट पर बढ़ा हुआ अतिरिक्त भार बार-बार आपको याद दिलाने की कोशिश करता है कि आपने गलती की है। सुबह का खराब पेट और पेट में लगातार होने वाला दर्द आपको भविष्य में इस चीज के लिए चेताता है कि आप यह त्रुटि दोबारा नहीं करेंगे। किंतु कुछ दिनों पश्चात वापस सामने सजे हुए पकवानों को देखकर यह मतवाली जीभ फिर से मचल जाती है और आप फिर से वही गलती कर बैठते हैं। यही होता है प्रज्ञापराध। यदि आप भी प्रज्ञापराधी हैं तो इससे कैसे बचा जाए और  सही वक्त पर कैसे स्वयं को रोका जाए। अंत में बात मन के संयम किसी आती है तो मन के संयम के लिए किस तरीके से ध्यान और मेडिटेशन के द्वारा अपने संयम को बढ़ाया जाए इस पर अपने विचार आप लोग भी व्यक्त कर सकते हैं।

Monday, March 11, 2019

स्वाद का भँवरजाल

कई बार मुझे ऐसा लगता है की मानव जीवन का मूल्य दिन प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है.मानव मस्तिष्क कई बार यह सोच लेता है कि वह जो कर रहा है वह बिल्कुल सही है और प्रकृति  के बनाए गए नियमों के अंतर्गत ही है, किंतु प्रकृति की लीला अपरंपार है और उससे पार पाना बहुत ही मुश्किल है. वर्तमान में सबसे ज़्यादा यदि जीवन का कोई पहलूनज़रअंदाज़ किया जा रहा है तो वो है मनुष्य का स्वास्थ्य.

ऐसा  लगता है की मनुष्य केवल आज में जीता है कल की चिंता बिलकुल नहीं है. आज सबसे बढ़िया खाने पीने की चीज़े ले लो, अगर आज हमारा पाचन तंत्र सही काम कर रहा है तो इसका मतलब ये नही कि कल भी ये बढ़िया काम करेगा, बल्कि आजकल तो ये परम्परा बन गयी है कि यदि अपना शरीर गड़बड़ी के कुछ संकेत भी दे तो दवाई लेकर काम चलाओ लेकिन परहेजी खाना ना बाबा ना. मुख्यतया विषय संयम का है लेकिन आज के समय में संयम रखना सबसे मुश्किल काम है, खासकर इस चटोरी जीभ का क्या किया जाए क्योंकि यह तो खाने के बाद भी संतुष्ट नहीं होती और नए नए स्वादों के लिए हमेशा लालायित रहती है | यदि मित्रों के पास इस जीभ  पर नियंत्रण के कुछ सुझाव या उपाय हो तो उसे जरूर शेयर करें शेष अगले लेख में….

Saturday, December 6, 2008

आखिर कब तक


ज़िन्दगी में हर कोई कभी ना कभी ये ज़रूर सोचता है की आख़िर कब तलक ऐसा ही चलेगा। कुछ लोग आजकल देश की सुरक्षा के बारे में सोच रहे हैं की ऐसा कब तक चलेगा। कोई ये सोच रहा है की नौकरियों में मंदी का दौर कब तक चलेगा.भविष्य कोई नही जानता मगर बदलाव की शुरुआत ख़ुद से करनी है |
अब जब ये पक्का होगया है की सबसे पहले बदलाव स्वयम की सोच में लाना है तो अपनी सोच से ही शुरुआत करनी होगी. ये वही सोच है जो कि हमारे विचारो का निर्धारण करती है.सोच को सदैव सकारात्मक रखना है | काम आसान नहीं है ओ मुश्किल भी नहीं है..बिलकुल साएकिल चलाने की तरह , आप यदि यह काम नहीं जानते हैं तो हमेशा आपको मुश्किल लगेगा किन्तु यदि आपने सीख लिया तो आपको बहुत आसान लगने लगेगा.
यह सत्य है कि  विचार बहुत चंचल होते है और आप विचार को रोक नहीं सकते.
मेडिटेशन या ध्यान सतत अभ्यास से ही आता है. सकारात्मक रहकर आप ध्यान ज़्यादा आसानी से कर सकते हो.