Tuesday, March 12, 2019

अपराधी कौन

क्या आप अपराधी हैं?यह सवाल पूछते ही सामने वाला चौकन्ना हो जाता है,अरे यह कैसा सवाल है? लेकिन इसमें एक राज छुपा है, यह सामान्य अपराध की बात नहीं हो रही है बल्कि कुछ ऐसे अपराध जिन्हें हम जानते बूझते करते हैं। हमारी प्रज्ञा यानी बुद्धि हमें बताती है कि यह गलत है, किंतु कुछ समय के लिए उस बुद्धि पर पर्दा पड़ जाता है और फिर भी हम वह अपराध करते जाते हैं, इसे ही प्रज्ञापराध कहते हैं। सवाल सही है क्या आप प्रज्ञापराधी हैं?
चलिए मुद्दे को और भी स्पष्ट कर देते हैं प्रज्ञापराध इस तरह के अपराध है जिन्हें हम अपने ज्ञान होने के बावजूद प्रतिदिन करते हैं जैसे अपने शरीर पर अत्याचार मसलन भोजन से जुड़ी हुई कुछ खराब आदतें जिन के विषय में पता है कि इस तरह का भोजन हमें नुकसान पहुंचाएगा उसके बावजूद भी हम सब बातों को दरकिनार करके वह भोजन करते रहते हैं। इसी प्रकार हमें पता है कि गंदगी बीमारियों को फैलाने में सहायक होती है लेकिन फिर भी हम साफ सफाई रखना भूल जाते हैं। हमें पता है जोर-जोर से संगीत बजाने से आसपास के लोगों को परेशानी होगी लेकिन कुछ समय के लिए हम सब कुछ भूल कर इस तरह के अपराधों में शामिल हो जाते हैं। शेष विषय तो फिर कभी लेंगे किंतु भोजन से जुड़ा हुआ विषय अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। व्यक्ति किसी भी पार्टी में भरपेट भोजन कर लेता है बल्कि यूं कहें कि पेट भरने की सीमा से अधिक खा जाता है। इससे यह होता है पेट पर बढ़ा हुआ अतिरिक्त भार बार-बार आपको याद दिलाने की कोशिश करता है कि आपने गलती की है। सुबह का खराब पेट और पेट में लगातार होने वाला दर्द आपको भविष्य में इस चीज के लिए चेताता है कि आप यह त्रुटि दोबारा नहीं करेंगे। किंतु कुछ दिनों पश्चात वापस सामने सजे हुए पकवानों को देखकर यह मतवाली जीभ फिर से मचल जाती है और आप फिर से वही गलती कर बैठते हैं। यही होता है प्रज्ञापराध। यदि आप भी प्रज्ञापराधी हैं तो इससे कैसे बचा जाए और  सही वक्त पर कैसे स्वयं को रोका जाए। अंत में बात मन के संयम किसी आती है तो मन के संयम के लिए किस तरीके से ध्यान और मेडिटेशन के द्वारा अपने संयम को बढ़ाया जाए इस पर अपने विचार आप लोग भी व्यक्त कर सकते हैं।

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