Monday, March 11, 2019

स्वाद का भँवरजाल

कई बार मुझे ऐसा लगता है की मानव जीवन का मूल्य दिन प्रतिदिन गिरता ही जा रहा है.मानव मस्तिष्क कई बार यह सोच लेता है कि वह जो कर रहा है वह बिल्कुल सही है और प्रकृति  के बनाए गए नियमों के अंतर्गत ही है, किंतु प्रकृति की लीला अपरंपार है और उससे पार पाना बहुत ही मुश्किल है. वर्तमान में सबसे ज़्यादा यदि जीवन का कोई पहलूनज़रअंदाज़ किया जा रहा है तो वो है मनुष्य का स्वास्थ्य.

ऐसा  लगता है की मनुष्य केवल आज में जीता है कल की चिंता बिलकुल नहीं है. आज सबसे बढ़िया खाने पीने की चीज़े ले लो, अगर आज हमारा पाचन तंत्र सही काम कर रहा है तो इसका मतलब ये नही कि कल भी ये बढ़िया काम करेगा, बल्कि आजकल तो ये परम्परा बन गयी है कि यदि अपना शरीर गड़बड़ी के कुछ संकेत भी दे तो दवाई लेकर काम चलाओ लेकिन परहेजी खाना ना बाबा ना. मुख्यतया विषय संयम का है लेकिन आज के समय में संयम रखना सबसे मुश्किल काम है, खासकर इस चटोरी जीभ का क्या किया जाए क्योंकि यह तो खाने के बाद भी संतुष्ट नहीं होती और नए नए स्वादों के लिए हमेशा लालायित रहती है | यदि मित्रों के पास इस जीभ  पर नियंत्रण के कुछ सुझाव या उपाय हो तो उसे जरूर शेयर करें शेष अगले लेख में….

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